Monday, October 19, 2009
आज़ाद क़लम क्यों?
मेरे ब्लॉग का नाम आज़ाद क़लम ही क्यों? मुझे लगता है कि अपनी बात कहने की शुरुआत इसी सवाल के जवाब के साथ होनी चाहिए। इस सवाल का जवाब जितना साधारण है, इसमें छिपी भावनाओं की जड़ें उतनी ही ज्यादा गहरी हैं। पत्रकारिता की दुनिया में रहते हुए कई मुद्दों पर लिखने का मौका मिलता है लेकिन अपने दिल की बात कहने और अपने अनुभवों को बेबाकी से रखने का मौका नहीं मिलता। दफ्तर के बाहर चाय वाले की दुकान पर या किसी नुक्कड़ पर साथ काम करने वालों और दोस्तों के साथ बातें तो बहुत होती है लेकिन ये बातें बहुत जल्द आई गई भी हो जाती हैं। ऐसे में दिल की बात पूरी आज़ादी के साथ कहने के लिए ब्लॉग से बेहतर दूसरा माध्यम नहीं हो सकता। सबसे बड़ी बात ये कि यहां टीआरपी का खेल नहीं है। आपके विचारों और लेखों को कूड़ा बनाने वाले उन नासमझों की नसीहत भी नहीं है जो जानते कुछ नहीं लेकिन तलवे चाट कर बड़ी कुर्सियों पर सवार होकर ज्ञान की शेखी बघारते फिरते हैं। उनकी अपनी नजर में उनसे बड़ा कोई उस्ताद नहीं होता। ये अलग बात है कि दुनिया उन्हें कुछ और ही समझती है। ये धूर्त भी यहां आपके विचारों में घालमेल की मिलावट नहीं कर सकते। मतलब क़लम को पूरी आजादी है और विचारों की उड़ान के लिए पूरा आकाश। यही वो माध्यम है जहां मैं पूरी ईमानदारी से कह सकता हूं कि 'जो कहूंगा सच कहूंगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा'...इसीलिए अब 'आज़ाद क़लम'
4 comments:
बड़े लोगों को आम शब्दों में नसीहत की बेबाक कलम....
खास की औक़ात बताने वाला नायाब गद्य.....
बेहतरीन पेशग़ी...
शुभकामनाएं
आपने बड़े नेक इरादे से अपने ब्लॉग का शुभारंभ किया है...उम्मीद है आपके आज़ाद कमल के माध्यम से हमें काफी कुछ जानने समझने का मौक़ा मिलेगा...
मुबारक को धम्मू भाई...पेड़ पर चढ़ तो गए पर सवाल ये है कि
अब उतरोगे कैसे...रंजेश
आज़ाद कलम को हम पत्रकार भाईयों के तरफ़ से सलाम,उम्मीद करते है कि शिर्षक की बेबाकी की तरह ही आप अपने क्रांतिकारी विचारों को इस इलेक्ट्रॉनिक सफ़ेद पेज पर उकेरते रहेंगे....सलाम सलाम सलाम
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