Wednesday, July 28, 2010

नेताजी के काफिले का कहर

कानों को चीरती हूटर की आवाज और चमकती हुई लाल - पीली बत्तियों वाली गाड़ियों के लंबे काफिले, राजधानी की सड़कों पर ये नजारे आम हैं। कह सकते हैं कि इनके होने से ही किसी शहर के राजधानी होने का अहसास होता है। राज्यों की राजधानी की ही बात करें तो सत्ता पर काबिज नेताजी लोगों के आने- जाने का सिस्टम यही है। वैसे तो नेताजी लोग पूरे देश में कहीं भी ऐसे ही तामझाम के साथ चलते हैं लेकिन राजधानी में चमक-धमक का ये जमावड़ा कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है। आप में से कई लोगों ने ऐसे नजारे देखे होंगे जब वीआईपी काफिले सड़कों पर घंटो जाम लगा देते हैं। काफिला राज्य के मुखिया का हो तब तो कहना ही क्या? घंटे भर पहले से सड़क पर खाकी का कहर दिखने लगता है। राजधानी में कानून व्यवस्था का हाल जो भी हो लेकिन सीएम साहब के लिए सड़क सूनी करने में सिपाही से लेकर अफसर तक जमकर पसीना बहाते हैं। किसी गरीब रिक्शे वाले या ऑटो वाले को गाड़ी हटाने में थोड़ी देर हो गई तो आपको तुंरत पता चल जाएगा की हमारी पुलिस मां और बहनों की कितनी इज्जत करती है। जगह-जगह ट्रैफिक रोक दिया जाता है, क्योंकि सीएम साहब का टाइम कीमती है, आम आदमी का क्या है देर हो गई तो हो गई। फिर क्या फर्क पड़ता है कि रोके गए ट्रैफिक में कोई मरीज फंसा हो जिसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना जरूरी है। क्या फर्क पड़ता है किसी की फ्लाइट या ट्रेन छूट रही हो।
   इस मुद्दे पर इसलिए अपनी बात कहने का मन हुआ क्योंकि वीआईपी मूवमेंट के नाम पर मनमानी की जाती है। मुझे अब तक तीन राज्यों की राजधानी में रहने का सौभाग्य मिला और तीनों ही जगह मैंने यही देखा। ऐसी कैसी सुरक्षा और जल्दबाजी है कि सैकड़ों लोगों को रोज परेशान होना पड़े। मैं जब-जब ऐसे-नजारे देखता हूं मुझे पीड़ा होती है। वोट लेने तक तो देश में लोकतंत्र होता है लेकिन सत्ता मिलते ही लोक लुप्त हो जाता है और नेता तंत्र का स्वामी बन जाता है। नेताजी शायद ये भूल जाते हैं कि वो जिस गाड़ी में बैठे हैं, और जिस पेट्रोल या डीजल से वो गाड़ी चल रही है वो सब उसी जनता के पैसे से खरीदा जाता है जो ट्रैफिक में फंसकर परेशान होती है। क्या ये वाकई जरूरी है कि कई गाड़ियों का काफिला होने पर ही कोई बड़ा मंत्री या नेता कहलाएगा? राजा महाराजाओं के दौर में ऐसी मनमानी होती तो समझ भी आता लेकिन वोट से सत्ता हासिल करने वालों को ऐसी मनमानी का कोई हक नहीं है। आम आदमी को मुश्किलें न हो इसका ख्याल हमेशा रखा जाना चाहिए। जरूरत हो तो वीआईपी मूवमेंट के लिए अलग सड़कें बनाई जानी चाहिए।